बातचीत...बचपन की यादें
ये उस समय की बात है जब मोबाइल का अविष्कार नही हुआ था। किसी -किसी के घर में ही लैंडलाईन फोन हुआ करते थे। बच्चे माचिस की डिबिया में धागे बांधकर फोन बना लिया करते। मैं भी अपनी सहेली रेनु के साथ छुट्टियों में सारे दिन यही काम करती। पहले माचिस की डिबिया से अपना फोन बनाते फिर अपनी -अपनी छतों पर आकर ढेर सारी बातचीत करते ।हमारी वो बातचीत कभी ना ख़त्म होने वाली होती।
हमारी बातचीत भी सिर्फ हमें ही समझ आती... रेनू के दोनों छोटे भाई, रेनू, मैं और हमारी कुछ सहेलियां, हम सब कोड-वर्ड में ही ज्यादा -तर बात करते। जो कि बाकि किसी को कुछ समझ नहीं आता। हम हर शब्द को उल्टा करके बोलते... जैसे मैं ताविक और वो नूरे😀😀😀...
बचपन होता ही ऐसा है उसकी हर याद खाश होती है। अब जबकि सबके पास smartphone है। हमारे पास समय नही है एक दूसरे के लिए। अपनी ही जिंदगी में सब इतना व्यस्त हो गए हैं कि अपने ही परिवार अपने दोस्तों के लिए हमारे पास समय नही है।
आज करीब 30 साल बाद भी अपनी सहेली रेनु से सम्पर्क में तो हूं, ये भी इस smartphone 📱 और फेसबुक, वाट्स अप और भी बहुत से ऐपस के कारण। अब हम दोनों अलग- अलग राज्य मे है। हम दोनों के बीच अब भी बात-चीत होती है कभी- कभी। विडियो काल में एक-दूसरे को देख भी पाते हैं। पर सच कहू अब इस बातचीत में वो मजा नहीं आता जो कि माचिस की डिबिया वाले उस फोन से बातचीत करने में आता था। समय के साथ हमारी वो कोड-वर्ड बातचीत बहुत पीछे रह गयी...... वो तो अब सब भूल गई.... पर मुझे लगभग सब याद है वो बचपन की बातचीत।
लच नेँलखे लेच... भीअ ईआ......नूरे......
आया कुछ समझ 😀😀😀😀
ये कहानी कविता ने रेनू के लिए लिखी है
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कविता झा'काव्या कवि'
madhura
02-Feb-2025 10:05 AM
v nice
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Khushi jha
12-Oct-2021 11:32 PM
यादगार
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Shalini Sharma
07-Oct-2021 02:03 PM
Nice
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